Wednesday 1 November 2017

success story 26

आज rpscmeme पर गिरधर सिंह जी के संघर्ष की कहानी जिन्होंने अभी ग्रामसेवक परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। जीवन की कठिन  परिस्थितियों से उन्होंने किस तरह संघर्ष किया,यह सभी के लिए प्रेरणादायी है। उनके शब्दों में उनकी कहानी-
"एक ख्वाब ने आँखे खोली हैं...
क्या मोड़ आया हैं कहानी में...
ये पोस्ट उन युवा साथियों के लिये हैं जो जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तम्मना तो रखते हैं लेकिन वो मानते हैं कि उनके हालात ऐसे हैं कि वे आगे नहीं बढ़ पा रहे है और एक-दो असफलता के बाद अपने लक्ष्य को तिलांजली दे देते हैं।
साथियों... मुझे असफलता का सामना पहली बार तब हुआ था जब में 9वीं कक्षा में फेल हुआ था। उसके बाद तो ये सिलसिला लगातार चलता ही रहा। पारिवारिक, सामाजिक, व्यापारिक हर क्षेत्र में असफलता पाई हैं लेकिन बात प्रतियोगिता परीक्षा की करें तो मैं 21 परिक्षाओं में फेल हुआ हुँ पुलिस, पटवारी, ldc, चपरासी, होमगार्ड, बैंक, गोला-बारूद, पंचायत सहायक आदि किसी में सिर्फ आधा-एक नंबर से पीछे रहा, तो किसी में मेरिट, हाईट, टाईपिंग आदि में बाहर निकल गया।हारा जरूर लेकिन मैदान छोड़कर नहीं भागा और 22वें exam ग्रामसेवक में सफलता मिल गई।
 हालांकि ras-ias बनने के ज़माने में ग्रामसेवक छोटा सा पद हैं लेकिन मेरे वृद्ध माता-पिता के लिये ये ias से भी बढ़कर हैं क्योंकि उन्होने अनपढ होते हुए भी , खेजड़ी के पत्ते और मींजल बेचकर अपना पेट पालते हुए मुझे पढाया। आर्थिक तंगहाली और गरीबी के कारण आज से कई साल पहले दादी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, उसके बाद एक चाचा ने जहर खाकर और दुसरे चाचा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। सिलसिला यहीं नही रुका और आज से 4 साल पहले दिपावली के दूसरे दिन बड़े भाई खुमानसिंह ने आत्महत्या कर ली। बुढापे में कमजोर होते शरीर और ऐसी घटनाओं के कारण माता-पिता अन्दर से टूट चुके थे।"
  rpscmeme गिरधर सिंह जी के संघर्ष व जज्बे को सलाम करता है,और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है। इस पर जीतेन्द्र कुमार सोनी (ias) जी की एक कविता की पंक्तियाँ समीचीन प्रतीत होती है-
                थार, थोर और थिर
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दुश्वारियों के थार में
उग आते हैं  हौसले
अक्सर थोर की तरह
किसी सहारे की आस बिना

अभावों का सूखापन,
आलोचनाओं की लू
और संघर्षों की तीखी धूप में
थोर-क्षीर की तरह
समेट लेते हैं सबकुछ
ज़िन्दा रहने की ज़िद
और जद्दोजहद में ।

थार में जीवन
थोर होने में है
थिर होने में नहीं !!

Jitendra Kumar Soni

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